शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

फिल्म : पिंक

फिल्म : पिंक
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डिस्क्लेमर : समीक्षा नहीं ; दर्शक की प्रतिक्रिया ;स्पॉइलर अलर्ट
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मुझे यह फिल्म बेहतरीन लगी । एक सोशल थ्रिलर । कोर्ट रुम ड्रामा । हालाकि हिंदी फिल्में या तो सामाजिक समस्याओं से बच कर निकलती है या उसे अति नाटकीय भावुकतापुर्ण प्रलाप में बदल देती हैं । गनीमत है इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं है ।
तीन कामकाजी लड़कियाँ एक डिनर के लिए लड़कों के साथ रिजार्ट में जाती हैं । वहाँ लड़के लड़कियों के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं । बचाव में लड़की लड़के के सिर पर बोतल फोड़ देती है । इसके बाद शुरु होता है लड़कों द्वारा -खासतौर से राजनीतिक कनेक्शन के कारण उन्हें डराने धमकाने , उन्हें बदनाम करने , उन्हें दुबारा अपहृत करने और मोलेस्ट करने , काउंटर केस कर उन्हें वेश्या साबित करने , पुलिस द्वारा मामले को जानलेवा हमले का गलत रुप देने का प्रयास होत है ।
फिल्म की जान है कोर्ट में होने वाली बहस । संवाद बिल्कुल सीधे और सधे हुए और इसलिए ज्यादा असरदायक हैं । फिल्म कंसेंट के कॉनसेप्ट को पुरी तरह स्पष्ट करती है लेकिन उपदेशात्मक तरीके से नहीं । यह उस बहस के नतीजे के रुप में निकलता है ।
फिल्म में कई जगह ठहराव है, लेकिन यह जरुरी लगते हैं , उस तनाव , डर , दवाब को महसूसने के लिए जो पात्रों पर गुजर रही है ।
यह महिला से जुड़े मुद्दे पर बनी फिल्म है , लेकिन हर पुरुष को देखनी चाहिए । हालाँकि मैं नारीवादी नहीं हूँ और पुरुष वर्चस्ववादी होने का आरोप लगता रहता है , लेकिन इससे पुर्ण सहमति है कि स्त्री के अधिकार वस्तुत: व्यक्ति के अधिकार हैं , बलात्कार को कपड़े, शराब आदि से जस्टिफाई नहीं किया जा सकता , और लैंगिक समानता के लिए फोकस पुरुष पर और उन्हें जेंडर सेंसिटिव बनाने पर होना चाहिए ।
हिंदी फिल्मों मे अमूमन हीरो जो हिरोइन को मनाने के लिए करता है , वह कानूनन और सामाजिक रुप से भी गलत है । यह फिल्म एक तरह से उन फिल्मों द्वारा प्रचारित गलतफहमियों को दूर करता है उम्मीद है कि फिल्म देखकर निकले पुरुष थोड़े संवेदन शील बनकर जरुर निकलेंगे ।
और यदि आपको शिकायत हो कि हिंदी फिल्म कंटेंट आधारित नहीं होती है तो यह फिल्म जरुर देखिए । और कंटेंट आधारित सिनेमा को बढ़ावा दीजिए ।


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