मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

दिसंबर साल का बुढ़ापा है !

दिसंबर साल का बुढ़ापा है !
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दिसंबर मुझे उदास करता है ! साल के आखिरी दिनों मे बार बार मन पीछे मूड मूड कर देखता है – क्या किया ! कैसे जिया ! क्या हो सकता था !? क्या नहीं हुआ !? क्या हो गया जो नहीं होना चाहिए था ! मन गहरे अवसाद मे डूब जाता है – शायद कुछ नहीं किया ! शायद जिया नहीं , बस गुजर गया – वक्त से , लोगों से बिना छूए !मुझे गुजरा हुआ साल हमेशा व्यर्थ नजर आता है !
मौसम भी इन दिनों मदद नहीं करता ! सर्दियाँ उतर आती हैं !खांसी और बुखार का हमला हो चुका होता है !धूप बस दिख जाती है , निकलती नहीं !कुहासा अवसाद को गहरा ही करता है !जिस्म पर गरम कपड़ों का बोझ जेहन पर भी महसूस होता है !बिना नहाए या कौआ स्नान से जिस्म के साथ चेतना भी गंदी लगने  लगती है !
शायद बुढ़ापे मे मौत को करीब पाकर इसी तरह की उदासी और पीड़ा से गुजरते होंगे जैसा मैं दिसंबर मे महसूस करता हूँ !मुझे लगता है – दिसंबर साल का बुढ़ापा है !

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