राज्य विशेष तक सीमित बैंकों का मरजर ही
उचित है ।
जीवन बीमा के क्षेत्र में देखिये । एक ही
सरकारी उपक्रम है एलआईसी जिसका जीवन बीमा पर एकाधिपत्य है। साधारण बीमा के क्षेत्र
में चार सरकारी उपक्रम है जिनके मुख्यालय देश के चार अलहदा महानगरों में है , फिर भी सारे देश में फैले हुये हैं।
इसके विपरीत बैंकिंग सेक्टर में देखिये ।
दो दर्जन से ज्यादा सरकारी बैंक हैं जो आपस में ही गलाकाट प्रतिस्पर्धा करते हैं
।सूची के निचले पायदान के बैंकों पर नजर डालें तो पाएंगे कि इसमें ज़्यादातर किसी
राज्य तक ही सीमित हैं ।इसके नाम में भी इंडिया नहीं , किसी राज्य विशेष का नाम जुड़ा है
। ये सिर्फ इस अर्थ में राष्ट्रिय हैं कि इनका स्वामित्व भारत
सरकार के पास है , बाकि शाखा के विस्तार , ब्रांड , बिजनेस ,
कर्मचारियों, कार्य संस्कृति आदि के स्तर पर ये राष्ट्रिय
बैंक नहीं हैं और किसी राज्य विशेष से संबद्ध हैं ।
इन बैंकों के यूनियन लीडर बड़ी भावुकता से बैंक की आइडेंटेटी
बचाने की बात करेंगे , लेकिन यह बात गोल कर
जाएँगे कि यह आइडेंटेटी बचाने लायक है भी या नहीं ।? ये यूनियन
लीडर भी राज्य विशेष के ही होते हैं
क्योंकि कर्मचारियों के स्तर पर राज्य विशेष के कर्मचारियों का दबदबा होता है ।
राष्ट्रीयकरण के दशकों बाद भी ये बैंक सही माने में राष्ट्रिय न बन सके , इसके विपरीत हर संभव प्रयास हुये कि ये राज्य विशेष और उनके लोगों की
बपौती बने रहे ।
माहौल ऐसा बनाया है कि इन बैंकों में काम
करने वाले दूसरे राज्यों से आने वाले कर्मचारी दोयम दर्जे के नागरिक बन कर रह गए
जिनकी कोई सुनवाई नहीं है । सारा फोकस राज्य विशेष में जड़ें जमाने में रहा और देश
भर में समान प्रसार की उपेक्षा हुई । जो शाखाएँ राज्य विशेष के बाहर खोली गई वे महज
खानापूर्ति के लिए थी न कि बिजनेस के लिए ।
ऐसों बैंकों का स्वतंत्र अस्तित्व
राष्ट्रियता के नाम पर मज़ाक हैं। अगर स्वामित्व भारत सरकार के पास है तो नाम में
भी इंडिया होना चाहिए, कम से कम किसी राज्य या
शहर का नाम नहीं होना चाहिए । राष्ट्रिय बैंक का चाल, चरित्र
और चेहरा भी राष्ट्रिय होना चाहिए ।
बेहतर होगा कि ऐसे सभी बैंकों का विलयन कर
बड़े बैंक बने जो सही मायने में राष्ट्रिय हों। यदि यूनियन लीडरों और राज्य विशेष
से संबन्धित कर्मचारियों को छोटे पोखरों जैसे बैंकों के अस्तित्व से इतना प्यार है
तो संबन्धित राज्य सरकार इन बैंकों का अधिग्रहण कर लें ।
कुएं का मेढंक होने से अच्छा है झील की
मछली होना ! मरजर का बेसब्री से इंतजार है !
Sir ji old scheduld pvt banks ka kya hoga
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