टोकन !
इन दिनों छोटे नोटों और सिक्कों की बड़ी किल्लत
है । इस हद तक की सामान्य रूप से बाजार करना
, चाय पीना , ऑटो चढ़ना आदि मुश्किल हो गया है । आप चाय
पीने जाएँ और चाय मांगे तो चाय देने से पहले पूछ लेगा – छुट्टा पाँच रुपया है न !? यदि दुर्भाग्य से उस समय आपके पास छुट्टे नहीं है तो वह आपको चाय देने से
भी मना कर देगा । यही हाल ऑटो वाले , किराना दुकान वाले , अखबार वाले, पान बीड़ी सिगरेट वाले के साथ भी है।
छुट्टे की वजह से कई बार नौबत बकझक तक की आ जाती है ।
दुकान
वाले कहेंगे –खुदरा लेकर आइये ।
खरीदार
कहेंगे – आप दुकान चलाते हैं आप दीजिये।
-हम कहाँ से लाएँ !?
- तो हम कहाँ से लाएँ !?
सवाल है जब बाजार में सिक्के और छोटे नोटो की
आपूर्ति ही नहीं है तो किल्लत तो होनी ही है । ऐसे में दूकानदारों ने एक उपाय निकाला
है । वे खुदरा लौटाने के बजाय टोकन देते हैं जिस पर दुकान का नाम , मोहर और दुकानदार की सही से साथ मूल्य लिखा रहता है । नियमित ग्राहकों के
लिए भी यह सुविधाजनक है । दिक्कत ऑटो वालों के साथ होती है जो यह सुविधा नहीं दे सकते
क्योंकि उनका कोई निश्चित ठिकाना नहीं होता या किसी नई जगह पर जाने पर जहां आपके दुबारा
जाने के चांस कम हैं या आप भुलक्कड़ स्वभाव
के हैं और टोकन संभालना आपके बस की बात नहीं है ।अन्यथा छुट्टे के बदले टॉफी थमाने
से यह ज्यादा अच्छी व्यवस्था है ।
इन टोकनों की कानूनी वैधता कुछ नहीं है , बस भरोसे
पर चलती है । वैसे सारी मुद्रा टोकन ही होती है जिनका खुद में कोई मूल्य नहीं होता
है , वह बस मूल्य विनिमय का साधन है और उसका लिखित मूल्य वास्तविक नहीं माना गया मूल्य है
जिसके पीछे शासन का समर्थन है। बहरहाल जबतक सरकार सिक्कों और छोटे नोटों की व्यवस्था नहीं करती , ये टोकन सही विकल्प हैं। और ये इस बात का सबूत है कि जनता चाहे तो अपनी समस्याओं
का समाधान खुद निकाल सकती है और निकालती है ।
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