बिहार से पिछले दिनों दो खबरें आई जो बिहार
की बदहाल शिक्षा व्यवस्था को उजागर करती है । पहली खबर यह कि दसवीं के बोर्ड में पास
का प्रतिशत बहुत कम है ! दूसरी खबर कि बारहवीं के टौपर अपने विषय के बारे में सामान्य
सवालों के जवाब भी नहीं दे पा रहे हैं !
सच बात यह है कि ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में
पढ़ाई होती ही नहीं । न शिक्षक आते हैं , न सामान्य
कमाने खाने वाले अपने बच्चों को पढ़ाने में विशेष रुचि लेते हैं ! दसवीं तक भी बहुत
कम बच्चे पहुंचते हैं । लड्कीयो में तो प्रतिशत और भी कम है !प्राइवेट स्कूल तो शिक्षा के नहीं पैसा उगाने के अड्डे हैं । ऐसे में
कई लोग या तो पास करने को महत्व नहीं देते ( दसवीं के बाद ब्याह ही करना है लड़की का, लड़के को धंधे में ही लगाना है ) या जो देते हैं वे पढ़ाई के बजाय जुगाड़ को
महत्व देते हैं – चोरी वाले सेंटर से फोरम भरने से , कॉपी जाँचने
वाले से संपर्क आदि ।
ऐसे में परीक्षा मे नकल पर लगाम लगी तो पास
का प्रतिशत गिर गया !सेटिंग वाले ने ज्यादा ही मेहरबानी कर दी तो को पास होने के लायक
नहीं थे , वे टॉप कर गए ।
पहली बात तो यह है कि सरकारी स्कूल का ढांचा
सुधारा जाये और वहाँ पढ़ाई सुनिश्चित किया जाये । शिक्षा मित्र जैसी तदर्थ व्यवस्था
के बजाए प्रशिक्षित शिक्षकों को महत्व दिया जाये । आम लोगों को भी सरकारी स्कूलों पर
निगरानी और दबाव रखना चाहिए ताकि वहाँ भी ढंग से पढ़ाई हो । पढ़ाई को महत्व दिया जाना
चाहिए । पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए ही जरुरी नहीं है , जिन्हे
दुकान ही संभालनी है , जिन्हे सिर्फ शादी ही करनी है , आदि वे भी पढ़
रहे हैं तो ढंग से ही पढ़ें ।
परीक्षा में नकल पर लगाम लगनी ही चाहिए । कदाचार
के लिए बदनाम सेंटर को बंद करने जैसे भी कदम उठाए जाने चाहिए । कॉपी की जांच , अंक देने आदि में पर्याप्त पारदर्शिता
बरतनी चाहिए । इसमें कोताही पकड़ने और दोषी को सजा देने की व्यवस्था भी होनी चाहिए ।
और जो लोग इन घटनाओं के आधार पर बिहार और बिहारियों
पर हमला कर रहे हैं , उन्हे याद दिलाना चाहूँगा कि
यह सिर्फ बिहार नहीं कमोबेश पूरे देश खासतौर से हिन्दी बेल्ट की बीमारी है । सुधार
बिहार से शुरू हो तो इससे बेहतर क्या होगा !
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