परशुराम जयंति कुछ नोट्स
जब किसी पात्र का जन्मदिन तो मनाया जाए पर साल
न बताया जाये ,किसी ठोस कालखंड के बजाय सतयुग, कलियुग आदि बताए , जब संबन्धित कथा में किसी ज्ञात व्यक्ति
का जिक्र न हो , ठोस एतिहासिक प्रमाण न हो, तो माना जाना चाहिए कि वह एक मिथ है , इतिहास नहीं !परशुराम
भी एक मिथ है !
यह देखना दिलचस्प है कि जो मिथक के पुनर्पाठ
द्वारा महिषासुर जयंति का मज़ाक उड़ा रहे थे, उसे जातिभेद
बढ़ाने वाला बता रहे थे वे भी परशुराम जयंति मना रहे हैं !गौरतलब है कि परशुराम की पूजा
एक ही जाति – ब्राह्मण (साथ में भूमिहार जो ब्राह्मण होने का दावा करते हैं ) के लोग करते हैं !यह भी कि परशुराम की
ख्याति एक दूसरे वर्ण –क्षत्रिय – के 21 बार नरसंहार के लिए हैं !यानि ब्राह्मण करे
तो संस्कृति और बहुजन करे तो विकृति !
कथा है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का
इस धरती से सामील नाश कर दिया !फिर ब्राह्मणों ने क्षत्रिय स्त्रियॉं से नियोग द्वारा
क्षत्रियों को पुनः जन्म दिया ! माने आज के
क्षत्रिय ब्राह्मणों के वर्ण संकर संतान हैं !यह मैं नहीं कथा कह रही है ! जिज्ञासा
है कि आज के जातीय गौरव से भरे क्षत्रिय कुमार/राजपूत/ठाकुर आदि परशुराम और इस कथा
के बारे में क्या प्रतिक्रिया देते हैं !?
कथा है कि परशुराम ने पिता की आज्ञा से आपनी
माँ का वध किया , जिन्हे पता चला कि उनकी पत्नी
के मन में गन्धर्वों को देखकर मन में “विकार” आया था !नारीवादी दृष्टि से राम आदि की
काफ़ी विवेचना हुई है !मेरे जानकारी में इस दृष्टि से परशुराम की समीक्षा नहीं गुजरी
! अभी तक एक पोस्ट भी नजर से नहीं गुजरा !मतलब यही निकलता है कि पर पुरुष के बारे में सोचना भी किसी स्त्री को वध योग्य बना
देता है !जो अंततः स्त्री के जीवन से ज्यादा उसकी यौन शुचिता को महत्व देना है !
प्रतिकों का अपना महत्व है !परशुराम के हाथ
में शास्त्र नहीं हैं, शस्त्र हैं –फरसा और धनुष-बाण ! परंपरागत रूप से ब्राह्मण का दावा ज्ञान , शिक्षा आदि पर है !लेकिन परशुराम की ख्याति योद्धा के रूप में है जिन्होने
पारंपरिक रूप से सत्ता पर नियंत्रण रखने वाले
और युद्ध कौशल पर दावा करने वाले क्षत्रियों का सहार किया !इनकी जयंति मनाने से निष्कर्ष
निकाला जा सकता है कि ब्राह्मण अपने वर्चस्व के लिए ज्ञान से ज्यादा बाहुबल/शक्ति पर भरोसा करते
हैं !इतिहास गवाह है कि ब्राहमनवाद ने राज्य सत्ता के सहयोग और तालमेल से ही अन्यों
को पराजित किया और अपना वर्चस्व बनाया !यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बहुजन
यदि ब्राहमनवाद और उनके वर्चस्व की तोड़ना चाहते हैं तो राजनीतिक सत्ता कब्जे में करनी
होगी !
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