इन दिनों मीडिया और पब्लिक में
बैंकरों पर सुनियोजित हमला बढ़ रहा है । ऐसा वातावरण रचा जा रहा है कि विमुद्रीकरण
के फेल होने का कारण बस बैंकर है ।
इस संबंध में कुछ टिप्पणियाँ
- बैंकर भी इसी समाज से
आते हैं , वे उतने ही ईमानदार या बेईमान हैं जितना कोई आम
भारतीय ।
- बैंक चूँकि फाइनेंस
से संबंधित है, इसलिए यह फ्रॉड प्रॉन इंडस्ट्री है । कहने का
मतलब यह है कि इसमें फ्रॉड की संभावना बाहरी लोगों और कर्मियों द्वारा भी हमेशा
बनी रहती है ।
-इसलिए बैंक में
अधिकांश काम के लिए दो कर्मियों की जरुरत होती है । चेक और काउंटर चेक की व्यवस्था
है । अंदरुनी जाँच के साथ , आरबीआई , ऑडिट,
सतर्कता विभाग - अंदरुनी और बाहरी दोनों , औचक
नीरिक्षण आदि कई चेक की व्यवस्था है । इसके बाद भी फ्रॉड होते हैं और दोषी पकड़े
जाते हैं , उन्हें सजा होती है । कई बार नौकरी भी जाती है और
जेल भी होती है ।
- टाईम्स ऑफ इंडिया के
साइट पर जिन तरीकों द्वारा बैंकरों की संलिपत्ता बताई जा रही है , वे भी फ्रॉड प्रॉन एरिया माने जाते हैं और उन पर ज्यादा निगरानी होती है ।
उनका पकड़ा जाना महज वक्त की बात है । और यह बैंक के रुटीन में आता है । बिना
सरकार और बाहरी एजेंसी के दखल के भी बैंक अपना अंदरुनी चेक सिस्टम दुरस्त रखती है
।
- कई मामलों में
बैंकरों की संलिपत्ता की बात करके पत्रकार महोदय बैंकिंग के बारे में अपने अज्ञान
का प्रदर्शन कर रहे हैं । मसलन एक बैंक के लॉकर में दस करोड़ रुपए मिले ।
नियमानुसार बैंक सिर्फ लॉकर किराये पर देती है । उसके भीतर रखी सामग्री ग्राहक की
जिम्मेदारी है । बैंकर को इसके बारे में न तो पता होता है और न ही उसे इस बारे में
पुछताछ करने का अधिकार है । जब ग्राहक लॉकर ऑपरेट करता है तो वहाँ बैंकर
नियमानुसार उपस्थित नहीं रह सकता है । ऐसे में लॉकर से नकदी बरामद होने पर बैंकर
की संलिपत्ता का सवाल ही नहीं उठता । जब अधिकार नहीं तो जवाबदेही भी नहीं बनती है
।
- मैं भ्रष्ट बैंकरों
का समर्थन नहीं करता और न ही उनका बचाव करना चाहता हूँ । न ही यह कहना चाहता हूँ
कि बैंक में सब कुछ सही है । लेकिन निश्चय ही इतना अंधेर भी नहीं है , जितना सरकार को बचाने के लिए बैंक में दिखाया जा रहा है । आलोचना जरुर
कीजिए , लेकिन फैक्ट और लॉजिक सही रखिए ।
#बैंक_बैंकर
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